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तुम मैं में कौन है ज्यादा प्रसन्न
तुम नहीं हो यहाँ पर मैं हूँ
इस प्राकृतिक जगत के सौंदर्य में
समाज के नीति नियमों से स्वतंत्र
जहाँ चिड़ियों की चहचहाहट है
नीले अंबर की गुनगुनाहट है
वर्षा के रिम झिम फौवारें हैं
सर्द हवाओं की सौगाते हैं
यहाँ जाति नहीं और न ही धर्म
यहाँ नस्ल नहीं और न ही कर्म
बस एक अनुभूति सी है यहाँ
जो इस जगत से मुझको जोड़े है
उसे अब क्या कहें?
तुम होती तो जरूर बताती
पर तुम्हें यह दुनिया पसंद नहीं
क्योंकि तुम ख़ुद में रहकर नहीं गयी थी उस दिन
बल्कि समाज के नियम तुम पर हावी थे
इसलिए मैं सोचता हूँ
गर जो होती तुम यहाँ
स्वतंत्र सत्ता होती दो यहाँ
कोई किसी की सत्ता में न होता विलीन
कोई किसी के सामने कभी न होता हीन
स्वतंत्र आए और जाते भी स्वतंत्र
इस संसार में न होते हम परतंत्र
पर हलचल हो गयी सागर से दूर
जिसमें किसी का नहीं कोई कुसूर
बस एक ही बात खटकती है
कि "तुम" और "मैं"
दोनों में ज्यादा प्रसन्न कौन है?