मन की चाह
मन क्यों चंचल इच्छा अनंत,
खोजे किसको हर क्षण हर पल |
संतोष नहीं ना शांत कहीं,
किसको पाने का रहता विकल ||
यह रंग रंगीली है दुनिया,
होता रहता नित नया यहां
है सार जगत का प्रेम-प्रसंग|
मन क्यों चंचल इच्छा अनंत ||
सुख क्षणिक हुआ, जब मिला एक,
फिर आया मन में,मिल जाए अनेक
न मात -पिता, न भाई-बहन,
सब महत्वहीन,न लगे अहम,
क्या खाऊं...
खोजे किसको हर क्षण हर पल |
संतोष नहीं ना शांत कहीं,
किसको पाने का रहता विकल ||
यह रंग रंगीली है दुनिया,
होता रहता नित नया यहां
है सार जगत का प्रेम-प्रसंग|
मन क्यों चंचल इच्छा अनंत ||
सुख क्षणिक हुआ, जब मिला एक,
फिर आया मन में,मिल जाए अनेक
न मात -पिता, न भाई-बहन,
सब महत्वहीन,न लगे अहम,
क्या खाऊं...