...

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हे प्रिय, है सत्य यही!💗🤗🌺
हो निश्चय ही मेरे प्राणों जैसे,
करते सदा मेरा हृदय स्पंदित,
श्वास से बसे हो तुम भीतर मेरे,
हो जैसे प्राप्त मूर्छित को अमृत,
🌺
कर ही देते हो तुम मुझे चकित,
विस्मित और कभी दिशा भ्रमित,
सौम्य, शालीन और सुशील तुम,
हो मानो कर्णप्रिय भाषा संस्कृत,
🌺
समय बेला हो चाहे कितनी भी,
कुरूप, विकृत अन्यथा कुत्सित,
नहीं हो सकते क्षण मात्र भर भी,
हमें तुम हे, प्रिये, कदापि विस्मृत,
💗
तुमसे ही है उज्ज्वल जीवन मेरा ,
आत्मा मेरी अलंकृत और झंकृत,
लिए पुष्प गुच्छ, हूं समक्ष तुम्हारे,
प्रणय निवेदन हे प्रिय,हो स्वीकृत!
❤️🤗🌺
— Vijay Kumar
© Truly Chambyal