शिकवे शिकायते सब छूट गए
अफ़सोस के आंसुओ ने आगाज़ फ़रमाया,
इन पलकों को बीते हर पल का एहसास कराया,
मौका-ए-गुफ्तगू जब नकारा था चंद शिक्वो की खातिर,
तब बीते लम्हों को भी आंखो का आशियां रास न आया,
आंसुओ का नकाब ओढ़ आंखों से छलक गिरे,
कितनी बड़ी खता की थी, इश्क़ नाराज़ हुआ, ये याद दिलाया,
सारा दिन बीत गया उनसे आंखेंचार को तरसते,
अब तरसते नैनो में केवल अपने दिलबर का इश्क़ ही सरमाया,
शिकवे शिकायते सब पीछे छूटे; इश्क़ मदहोशी छाई हरपल,
काश!, काश! तब मान गए होते, तो आज ये दिल यूं होता न भरमाया,
देर कर चुके थे हम, सब छूट चुका था, यादों में सब बीत चुका था,
अफसोस भी अफसोस की चादर ताने मन मेरे पे छाया,
क्या ही करू? राह निहारती आंखें अब भी बेचैन है,
क्योंकि आरजूओं ने अब भी उनके लौट आने का सपना है सजाया।
© Literaria
इन पलकों को बीते हर पल का एहसास कराया,
मौका-ए-गुफ्तगू जब नकारा था चंद शिक्वो की खातिर,
तब बीते लम्हों को भी आंखो का आशियां रास न आया,
आंसुओ का नकाब ओढ़ आंखों से छलक गिरे,
कितनी बड़ी खता की थी, इश्क़ नाराज़ हुआ, ये याद दिलाया,
सारा दिन बीत गया उनसे आंखेंचार को तरसते,
अब तरसते नैनो में केवल अपने दिलबर का इश्क़ ही सरमाया,
शिकवे शिकायते सब पीछे छूटे; इश्क़ मदहोशी छाई हरपल,
काश!, काश! तब मान गए होते, तो आज ये दिल यूं होता न भरमाया,
देर कर चुके थे हम, सब छूट चुका था, यादों में सब बीत चुका था,
अफसोस भी अफसोस की चादर ताने मन मेरे पे छाया,
क्या ही करू? राह निहारती आंखें अब भी बेचैन है,
क्योंकि आरजूओं ने अब भी उनके लौट आने का सपना है सजाया।
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