मटरगश्ती
बचपन से सुना है
लड़के नहीं रोया करते
ना जाने फिर दर्द होने पर
क्या क्या है किया करते
परेशानियों को अपने
शायद हंसी में है उड़ा देते
या फिर मदिरा से ही
बेपनाह इश्क कर बैठते
ख्वाहिशें तो होती है उनकी
किसी संदूक में बंद कहीं
और फिर मुस्करा कर कहते हैं
चलो, कोई बात नहीं
सर्दी, गर्मी, धूप और बरसात
दिन हो या हो फिर रात
अपनी परवाह नहीं करते
अपनों के लिए परेशान रहते
बस कुछ ऐसा ही है
एक लड़के का जीवन
चाहे कोई भी हो मौसम
सूना रहता है उनका आँगन
© आशिष रतन
लड़के नहीं रोया करते
ना जाने फिर दर्द होने पर
क्या क्या है किया करते
परेशानियों को अपने
शायद हंसी में है उड़ा देते
या फिर मदिरा से ही
बेपनाह इश्क कर बैठते
ख्वाहिशें तो होती है उनकी
किसी संदूक में बंद कहीं
और फिर मुस्करा कर कहते हैं
चलो, कोई बात नहीं
सर्दी, गर्मी, धूप और बरसात
दिन हो या हो फिर रात
अपनी परवाह नहीं करते
अपनों के लिए परेशान रहते
बस कुछ ऐसा ही है
एक लड़के का जीवन
चाहे कोई भी हो मौसम
सूना रहता है उनका आँगन
© आशिष रतन