...

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बोल दो
ये सच हैं या भांग की खेल
कुछ कह दें पर बोल दी तू ,
तेरे मन का वो कोने जो तू,
हम से चुपाके रख दिया था।

पर क्यूं ऐसे रख लेते हो तू?
क्या प्रेम का रंग अलग है?
क्या हमें और वक्त चाहिए,
अपने मन कि इस बात कहने?

क्या हमारा धड़कन एक होंगे?
या धड़कन की आवाज बढ़ती?
या धड़कन तेज़ चलती क्या?
कानों को उस शब्द बरदाश नहीं।

अगले पल क्या हमारे पास है?
नहीं कुछ थी हमारे बस पे नहीं।
बोल दो अभी जो मन मैं है।
फिर जिएंगे मुस्कुराहट जिंदगी।।
© avn