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भूल जाती हूं
मैं लिखने बैठती हूं
और भूल जाती हूं
इस बार कुछ भी लिखना है
बस तुम्हे नहीं लिखना
चांद को लिखना है
सितारों को लिखना है
पर जिक्र सितारों का
तुम्हारे बगैर कैसे हो?
मुझे पसंद है चांदनी लेकिन
ये आसमान के सारे सितारे तुम्हारे हैं ना?
मेरे बगैर तुमने भी तो
जाया किए दिन कितने
मेरी याद में तुमने भी रातें
रो कर गुजारें हैं ना?
या फिर कह दो
की ये सच नहीं है
कह दो की तुम्हे याद नही आती मेरी
जब देखते हो अमलताश के पीले रंग
कह दो की
हर्षृंगार की खुशबू में डूबी रातें
तुम्हे मुझसे मिलने को नहीं करती बेचैन
कह दो की
ये सब झूठ है
या मैं सच मान लूं
की तुम भूल चुके हो?
मेरा होना ना होना
अब सब बेमानी है
कह दो की
तुम्हारी बातों में नमी लिए
कोई पुरानी कहानी है
मैं नहीं हूं
तुम्हारे खयाल में
जवाब में
सवाल में
मैं कहीं नहीं हूं
©प्रिया सिंह
© life🧬
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