...

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"गज़ल"
हमें गुमनामी मंज़ूर है,पहचान आप रख लिजिये।
आने दो श्राप हिस्से में,वरदान आप रख लिजिये।।

फ़ीता फेंकोगे,कचहरी जाओगे,तारीख़ें पड़ेंगी-
हमसे नही होगा सब,ये मकान आप रख लिजिये।

वाह-वाही के निवाले तुम्हारी आदत हो गये हैं-
भूख लग सकती है,कद्रदान आप रख लीजिये।

देनी ही है तो ये धूल चढ़ी पुरानी किताबें दे दो-
ये दुर्लभ तलवार,तीर-कमान आप रख लीजिए।

यूँ दिखावे की ख़ातिर ओढ़ ये लेना इंसानियत-
गर यही ईमान है तो ये ईमान आप रख लीजिये।