...

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इश्क़ है या भ्रम है कोई
इश्क़ इतना मजबूर क्यूँ है?
वो पास होकर भी इतनी दूर क्यूँ है??
कोई है मगरूर तो कोई इतना मशहूर क्यूँ है?
है जब खुश हर कोई दुनिया में अपने
फ़िर वक्त का ही सब कुसूर क्यूँ है??
न मिल सकते हैं न बिछड़ने को हैं तैयार
ये ख्वाबों, ख्यालों का ऐसा दस्तूर क्यूँ है
आज भी आती है उन गलियों में बारिशें
वो बूँद इस मुहल्ले से
हर दफ़ा मिलता ज़रुर क्यूँ है??
कभी शाम आ जाती पलकों पर तो
कभी रात बुलानी पड़ती है!!
ये नींद है न जाने किसी रातों की
जिसे हर सुबह जगानी पड़ती है!!
कभी पर्वतों की आरज़ू तो कभी
सपनों का अधूरा रह जाना
ख्वाहिशों से...