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मिलनापर वैसे नहीं
कैसे बताऊं उन्हें
कि बेशक मिलना
पर वैसे नहीं
जैसे रात मिलती सुबह से
क्योंकि वो रात का होता है अंत
और सुबह की शुरुआत।
बेशक भर लेना
उन्हें खुद में
पर वैसे नहीं जैसे
नदियां समुंदर से मिलती है
और अपना अस्तित्व खोती है।
क्योंकि तुम्हारे अस्तित्व को
वह नहीं चाहता खोना।
- डॉ.जगदीश राव
कि बेशक मिलना
पर वैसे नहीं
जैसे रात मिलती सुबह से
क्योंकि वो रात का होता है अंत
और सुबह की शुरुआत।
बेशक भर लेना
उन्हें खुद में
पर वैसे नहीं जैसे
नदियां समुंदर से मिलती है
और अपना अस्तित्व खोती है।
क्योंकि तुम्हारे अस्तित्व को
वह नहीं चाहता खोना।
- डॉ.जगदीश राव
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