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रिश्ते मजबूरी के
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
रिश्तों पे जिधर देखो चल रही छुरी है
अपनों से ही बनाई अब सबने दूरी है
तुल रहें हैं रिश्ते,पैसों के बाज़ार में यहां
हकीकत से दूर होकर इंसान
दिखावा कर रहा है
दूसरों से नहीं,छलावा खुद से कर रहा है
समझ ही नहीं आता कि
हम बदल रहे हैं या मायने ज़िंदगी के
इक यही बात समझने में ,हो रही देरी है
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
रिश्तों पे जिधर देखो चल रही छुरी है
अपनों से ही बनाई अब सबने दूरी है
तुल रहें हैं रिश्ते,पैसों के बाज़ार में यहां
हकीकत से दूर होकर इंसान
दिखावा कर रहा है
दूसरों से नहीं,छलावा खुद से कर रहा है
समझ ही नहीं आता कि
हम बदल रहे हैं या मायने ज़िंदगी के
इक यही बात समझने में ,हो रही देरी है
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