...

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सच कंहा जियेगा..
कानाफूसियों को जगह मिल जाती
सच की जगह ख़ाली है
बात मज़ेदार और मसाले से चटपटी
मर्तबान तो बस सवाली है

तू दिखा है…तू ही भला है
पीछे बस पीठ की पहरेदारी है
कंहाँ जगह है इंसानियत की
हर मन में छिपी मक्करी है

जताकर ख़ुद को सबसे भला
बस क्षण भर की ख़ुशहाली है
हुई ज़मी भी बंजर पापों से तेरे
और कहता मेरी बात निराली है

न रंगीन फ़िज़ाएं न ख़ुशनुमा माहौल
असल फूलों पर काग़ज़ी फूलों की मार भारी है
मुखौटों ने भर दी है आव-ओ-हवा
पर..सच की जगह तो ख़ाली है