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उम्र सारी यूँ करवाहट में न जीने देते
उम्र सारी यूँ करवाहट में न जीने देते
कुछ हलावत के घुट मुझको भी पीने देते

ये जो मातम पसरा है मेरे जाने के बाद
काश के जीते जी भी मुझको जीने देते

यूँ तल्खियां न मिलती ज़माने से मुझको
गर घर की बात घर तक ही रहने देते

कोई तड़पता न कभी बिरहा के गम से
जो शहर की सड़के न गांव से मिलने देते

बेटे से बढ़कर बढ़ाती वो मान तेरा
कली को खिल कर फूल तो बनने देते
© Roshan Rajveer