...

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भीड़ में आंखें
जब मैं 12वीं में पढ़ती थी,
एक बार अकेले ही,
कर रही थी सफर ट्रेन में।
बहुत ज्यादा ही डरी हुई,
मन में लगता था,
सुरक्षित एवं सही सलामत,
क्या मैं पहुंच तो जाऊंगी,
अपने गंतव्य तक।
सिकंदराबाद में,
भाई ने ट्रेन में बैठा दिया।
कहा- अपना ध्यान रखना,
पापा आपको पटना स्टेशन,
पर लेने आ जाएंगे।
सीट थी लेडिस कंपार्टमेंट में।
इसलिए आपको डरने की
कोई जरूरत नहीं।
मन को कठोर एवं बड़ी हिम्मत के साथ,
बैठी थी अपनी सीट पर।
उसी समय एक और लड़की चढ़ी।
हम दोनों में बातें हुई,
उसने कहा- देखो डरने की जरूरत नहीं।
अब हम दोनों हैं।
बस सिर्फ रखना इस बात का ध्यान,
बाकी बचे इन चार सीटों पर,
सिर्फ कोई लेडिस ही सफर कर सकती है।
अगले किसी स्टेशन पर,
एक लड़का आया और एक सीट पर बैठ गया,
जब मैंने मना किया,
तो कहने लगा-
यह सीट मेरी मम्मी की है,
पर वह अपने
अपने परिवार के सदस्यों के साथ,
दूसरी बोगी में बैठी है।
घर में किसी की मृत्यु हो गई है,
और वह इस हालत में नहीं...