वो ख़ुद को तलाशती है..
वो आईने को देखती है, बार-बार,
जब वो तन्हा होती है, बिखरी होती है,
ख़ुद की आंखों में ख़ुद को तलाशती है,
कहाँ से शुरू करे, कहां पर खत्म,
वो अपनी मंजिल तलाशती है,
वो लाख टूटने के बाद भी अक्सर खिल जाती है,
और वो पगली, बादलों के...
जब वो तन्हा होती है, बिखरी होती है,
ख़ुद की आंखों में ख़ुद को तलाशती है,
कहाँ से शुरू करे, कहां पर खत्म,
वो अपनी मंजिल तलाशती है,
वो लाख टूटने के बाद भी अक्सर खिल जाती है,
और वो पगली, बादलों के...