...

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वो ख़ुद को तलाशती है..
वो आईने को देखती है, बार-बार,
जब वो तन्हा होती है, बिखरी होती है,
ख़ुद की आंखों में ख़ुद को तलाशती है,
कहाँ से शुरू करे, कहां पर खत्म,
वो अपनी मंजिल तलाशती है,

वो लाख टूटने के बाद भी अक्सर खिल जाती है,
और वो पगली, बादलों के गरजने पर डरती है,
जाने क्या ढूंढती है, वो ख़ुद भी नहीं जानती,
अपार ऊर्जा लिए खुद के अंदर,
न जाने क्यूं, वो सहारे तलाशती है,

वो आईने को देखती है, मन्द-मन्द मुस्काती है,
सबका ख़याल रखती है, और ख़ुद को भूल जाती है,
वो बहादुर है वो हर जंग जीत सकती है,
ये बातें वो ख़ुद भी जानती है मगर,
सबकी आंखों में खुद पर, सहमति तलाशती है।
- Vishakha Tripathi

© Vishakha Tripathi