...

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क्यों हो गए
मेरी कामयाबियों से क्यों परेशां गए
मेरे घर आई थीं कभी दुश्वारियां
मेरी खुशियों से क्यों हैरान हो गए
टूटा था दिल मेरा, तनहाईयों ने किया था बसेरा
मुझे मंज़िल पे देखकर क्यों बदगुमां गए
मैंने उदासियों में गुजारी है ज़िन्दगी
तुम क्यों आजिज हो आए हुए
जो मेरे होंठों पे मुस्कान आ गई
तुम्हें अफसोस है क्यों
कल तक थे जो दुश्मन मेरे
आज मेरी जां हो गये

© सरिता अग्रवाल