ग़ज़ल
हो न हो इस बार कोई मोजिज़ा हो जायेगा
लम्हा लम्हा ज़िंदगी का ख़ुशनुमा हो जाएगा
अश्क़ ने तो दे दिया धोखा सर-ए-महफ़िल में अब
आँख में तिनका बता भी दूँ तो क्या हो जाएगा
वो अगर अफ़सुर्दगी का पूछ लें हमसे सबब
पत्ता पत्ता शाख़-ए-दिल का फिर हरा हो जाएगा
सज़दा करते वक़्त...
लम्हा लम्हा ज़िंदगी का ख़ुशनुमा हो जाएगा
अश्क़ ने तो दे दिया धोखा सर-ए-महफ़िल में अब
आँख में तिनका बता भी दूँ तो क्या हो जाएगा
वो अगर अफ़सुर्दगी का पूछ लें हमसे सबब
पत्ता पत्ता शाख़-ए-दिल का फिर हरा हो जाएगा
सज़दा करते वक़्त...