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☆मेरा तारा☆
#फ़ीनिक्सपुनर्जन्म
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सिसक आसमां रहा था
सिसक रहा था हर काया
हिस्से का एक तारा मेरा
बिखर टूटकर गुम अनंत में था वह
लुप्त चमक थी उसकी अब
वह चमक रोम रोम में बस आया
थिरक रहा था अब रोम रोम भी
हर हँसी बटोर अपनी झोली में
क्योंकि था वह संग ले लाया।।
वह तारा था असीम अजीज
पल पल सजता दमक से उसके
छन छन करते घनक से उसके
दर, दरवाजा और हर दहलीज
बिखर टूटकर गुम अनंत में था वह
पर दीप्ती उसकी सुलग रही थी
धरा तक पहुँच जो पाया
उसके टुकङे सुलगते अंगारों से
अब सारी तृप्ति है उसी हँसी में
सुलझी उलझी उसी खुशी में
क्योंकि वह जीवन नव लाया।।
वह तारा मेरे हिस्से का था
अपने हिस्से में बसा लिया
छन छन कर रही लौ से उसके
हिय अपना मैंने सजा लिया
कतरा कतरा अपने खून से सींच
लाली उसमें भर लाया था..
वह लाली सजा गई आँगन मेरा
चमक वहाँ दूर आसमां में
पग पग पर डगर दिखा रहा था।।
🍂राजीव जिया कुमार
सासाराम, रोहतास, बिहार।







© rajiv kumar