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धड़क
मैं तेरी आवाज़ से धड़क जाता था।
तेरी हंसी से मेरा मन खनक जाता था ,
तौबा उस पे तेरी बातों का नशा ,
जो मेरे तन मन की तलब मिटा जाता था।
संगदिल जबसे छोड़ा तूने नशा देना ,
बदन में अजीब खुनकी सी मची रहती है।
होंठों पे शदीद जमा बातों का चस्का,
ख़ैर सिगरेट की तपन मिटा देती है।
पर तेरी हंसी कहां से लाऊं जिसे सुनकर
मेरा दिल, मेरा वज़ूद धड़क जाता था।।
© khak_@mbalvi
तेरी हंसी से मेरा मन खनक जाता था ,
तौबा उस पे तेरी बातों का नशा ,
जो मेरे तन मन की तलब मिटा जाता था।
संगदिल जबसे छोड़ा तूने नशा देना ,
बदन में अजीब खुनकी सी मची रहती है।
होंठों पे शदीद जमा बातों का चस्का,
ख़ैर सिगरेट की तपन मिटा देती है।
पर तेरी हंसी कहां से लाऊं जिसे सुनकर
मेरा दिल, मेरा वज़ूद धड़क जाता था।।
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