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मेरी मुझसे यही गुहार है
खुद में ढलने का हमने यूं ठाना
क्यूं भागू जहां मे जब मुझमें ही पूरा जमाना
मेरे रंग को मैने अब करीब से जाना
हर रंग का भाव मुझ में मैंने पहचाना
किताब सी गहरी मेरी जुबान का कहना जो माना
खुद में ढलने का हमने यूं ठाना
बहुत दौड़ लगाई अब ठहर का मतलब जाना
फूलों को देखा बहुत खुशबू को अब करीब से जाना
बालों की भीनी खुशबू में अपनी मुस्कान पाना
आईने में झलकती परछाई को हिम्मत देना जाना
खुद में ढलने का हमने यूं ठाना
................
अंजलि राजभर
क्यूं भागू जहां मे जब मुझमें ही पूरा जमाना
मेरे रंग को मैने अब करीब से जाना
हर रंग का भाव मुझ में मैंने पहचाना
किताब सी गहरी मेरी जुबान का कहना जो माना
खुद में ढलने का हमने यूं ठाना
बहुत दौड़ लगाई अब ठहर का मतलब जाना
फूलों को देखा बहुत खुशबू को अब करीब से जाना
बालों की भीनी खुशबू में अपनी मुस्कान पाना
आईने में झलकती परछाई को हिम्मत देना जाना
खुद में ढलने का हमने यूं ठाना
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अंजलि राजभर
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