बेबस हम तुम
कमाल ये की उठती गिरती धड़कन बची तो है
भ्रम इस कदर परिचित का स्पर्श साथ ही तो है
दरमियाँ चुप्पी के उधरे बुने से ख़्वाब बचे तो है
कम्बख्त प्रतीत ऐसा की...
भ्रम इस कदर परिचित का स्पर्श साथ ही तो है
दरमियाँ चुप्पी के उधरे बुने से ख़्वाब बचे तो है
कम्बख्त प्रतीत ऐसा की...