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औरों की तरह ही आम हूँ
कभी हंसती तो कभी रोती
कभी गुनगुनाती मैं
कभी बुढ़ी तो
कभी छोटी बच्ची बन जाती मैं
थोड़ी अच्छी थोड़ी बुरी भी हूँ,
थोड़ी सच्ची थोड़ी नादान हूँ
कुछ नया सा नहीं है मुझमें,
मैं भी औरों की तरह ही आम हूँ

कुछ सुन लेतीं हूँ कुछ सुना देती
ऐसे ही अपने मसले सुलझा लेतीं
कभी रूठ कर सताती हूँ सबको
कभी खुद बखुद मान जाती हूँ
थोड़ी...