" इज़ाजत "
क्यों ना समझे मर्म मेरा ?
आखिर हूँ मैं एक रचना,
फिर क्यों पड़ी पन्नों पर,
इतने दिनों से बनकर राज़ हूँ !
लिखते-मिटते कुछ सुन्दर,
अल्फाज़ो से,
मन में उमड़ते कितने ही भावों से,
बंधकर मैं हुई तैयार हूँ !
मूल्यांकन ना हो जब तक मेरा,
चले कैसे पता, कैसा है सृजन मेरा ?
क्या सिर्फ...
आखिर हूँ मैं एक रचना,
फिर क्यों पड़ी पन्नों पर,
इतने दिनों से बनकर राज़ हूँ !
लिखते-मिटते कुछ सुन्दर,
अल्फाज़ो से,
मन में उमड़ते कितने ही भावों से,
बंधकर मैं हुई तैयार हूँ !
मूल्यांकन ना हो जब तक मेरा,
चले कैसे पता, कैसा है सृजन मेरा ?
क्या सिर्फ...