Azadi
तुम कहते हो कि,
खुल के जियो,
पर क्या तुम खुल के जीने का मतलब जानते हों।
तुम कहते हो कि,
तुम्हारी जिंदगी हैं,
तुम्हारी आजादी,
पर मुझे ये बताओ क्या तुम,
एक लड़की की आजादी की कीमत जानते हों।
चार दीवारी बाबुल की और,
चार दीवारी ससुराल की,
उन चार दीवारियों में जकड़े जाने,
का मतलब जानते हो।
एक बार बाहर आजादी को जीने का सपना देखा,
तो समाज में सती और दहेज प्रथा का आभार मिला,
और तुम कहते हो कि,
हमें आजादी को जीना सीखना होगा,
अरे आसपास नज़र उठा के तो देखो,
समाज में स्त्री के लिए कुरीतियों का जंजाल बिछा।
समाज नारी सशक्तिकरण की बात करता हैं,
क्यों ना पहले तुम,
समाज का सशक्तिकरण करो।
चाए दीवार पत्थर की हो या प्रथाओं की,
बार-बार बचने की कोशिश में,
सौ बार ये भ्रम टूटा,
लड़की हो लड़की बनके रहो।
क्यों ना तुम पहले,
समाज की बनाई परिभाषा बदलो,
जो भेद करें लड़कें और लड़की में,
स्त्री और पुरुष में।
क्या बातें बनाते हो यार आजादी की,
स्त्रियों को घर से पहलें,
जहन में इज़्ज़त देना तो सीखो।
सोच वही पुरानी हैं ,
पर बातें बड़ी-बड़ी बनानी हैं,
क्या उखाड़ लिया तुमने चार बातें बनाकर,
जब अभी भी उसे मिली आज़ादी पर,
नाम उसका नहीं,
कभी भाई, कभी बाप और कभी पति,
कभी ससुर, कभी बेटा,
अरे मुझे ये बताओ तुम,
किसी की आज़ादी पर हक,
जमाने का अधिकार कहा से रखते हो।
अरे बहुत खूब,
तुम तो किसी के जज्बातों को मारने की,
कला जानते हो,
और तुम आज़ादी की बात करते हो।
© shivika chaudhary
खुल के जियो,
पर क्या तुम खुल के जीने का मतलब जानते हों।
तुम कहते हो कि,
तुम्हारी जिंदगी हैं,
तुम्हारी आजादी,
पर मुझे ये बताओ क्या तुम,
एक लड़की की आजादी की कीमत जानते हों।
चार दीवारी बाबुल की और,
चार दीवारी ससुराल की,
उन चार दीवारियों में जकड़े जाने,
का मतलब जानते हो।
एक बार बाहर आजादी को जीने का सपना देखा,
तो समाज में सती और दहेज प्रथा का आभार मिला,
और तुम कहते हो कि,
हमें आजादी को जीना सीखना होगा,
अरे आसपास नज़र उठा के तो देखो,
समाज में स्त्री के लिए कुरीतियों का जंजाल बिछा।
समाज नारी सशक्तिकरण की बात करता हैं,
क्यों ना पहले तुम,
समाज का सशक्तिकरण करो।
चाए दीवार पत्थर की हो या प्रथाओं की,
बार-बार बचने की कोशिश में,
सौ बार ये भ्रम टूटा,
लड़की हो लड़की बनके रहो।
क्यों ना तुम पहले,
समाज की बनाई परिभाषा बदलो,
जो भेद करें लड़कें और लड़की में,
स्त्री और पुरुष में।
क्या बातें बनाते हो यार आजादी की,
स्त्रियों को घर से पहलें,
जहन में इज़्ज़त देना तो सीखो।
सोच वही पुरानी हैं ,
पर बातें बड़ी-बड़ी बनानी हैं,
क्या उखाड़ लिया तुमने चार बातें बनाकर,
जब अभी भी उसे मिली आज़ादी पर,
नाम उसका नहीं,
कभी भाई, कभी बाप और कभी पति,
कभी ससुर, कभी बेटा,
अरे मुझे ये बताओ तुम,
किसी की आज़ादी पर हक,
जमाने का अधिकार कहा से रखते हो।
अरे बहुत खूब,
तुम तो किसी के जज्बातों को मारने की,
कला जानते हो,
और तुम आज़ादी की बात करते हो।
© shivika chaudhary