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हां तू ही तू!!!
शब्दों में तू, नज़्मों में तू, गजलों में तू!
हां तू ही तू, शायरी की हर मिसरों में तू।
बातों में तू , ख्वाबों में तू, यादों में तू!
हां तू ही तू, कहानी की हर किस्सों में तू।
सांसों में तू, धड़कन में तू, रक्तोंं में तू!
हां तू ही तू, जिस्म की हर हिस्सों में तू।
दूख में तू, सुख में तू, और विश्वास में तू!
हां तू ही तू, मेरे जीने की उम्मीदों में तू।
बसा है तू, छुपा है तू, और रहता है तू!
हां तू ही तू, बस तू ही तू मेरे इशकों है तू।
© महज़
हां तू ही तू, शायरी की हर मिसरों में तू।
बातों में तू , ख्वाबों में तू, यादों में तू!
हां तू ही तू, कहानी की हर किस्सों में तू।
सांसों में तू, धड़कन में तू, रक्तोंं में तू!
हां तू ही तू, जिस्म की हर हिस्सों में तू।
दूख में तू, सुख में तू, और विश्वास में तू!
हां तू ही तू, मेरे जीने की उम्मीदों में तू।
बसा है तू, छुपा है तू, और रहता है तू!
हां तू ही तू, बस तू ही तू मेरे इशकों है तू।
© महज़
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