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तन्हाई का दर्द ।
चार दिवारी से बना एक खाली मकान देखा।
सुनसान रात के साय में बिखरा सामान देखा ॥
मेज पर रखी थी चन्द किताबें और अतीत के पन्नों को रद्दी के भाव बिकते देखा।
मुर्दों के शहर में इंसान जिन्दा नही थे। रूह के तलाश में जिस्म से कफन बेचते देखा ॥
मोहब्बत के नाम मिटने वाले हर महबुब की हाथों की "मेहंदी " को खुब उतरते देखा ॥
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सुनसान रात के साय में बिखरा सामान देखा ॥
मेज पर रखी थी चन्द किताबें और अतीत के पन्नों को रद्दी के भाव बिकते देखा।
मुर्दों के शहर में इंसान जिन्दा नही थे। रूह के तलाश में जिस्म से कफन बेचते देखा ॥
मोहब्बत के नाम मिटने वाले हर महबुब की हाथों की "मेहंदी " को खुब उतरते देखा ॥
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