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आब-ए-इश्क़🙈😘😍💞
ग़ज़लों की शाम से,
चाँदनी ढलक रही थी
उन्होंने जो देखा हमें,
धधकती हुई मोहोब्बत
नूर सी बरस रही थीं
फ़क़त वो रहते थे तन्हा
औऱ सरगोशियां मिलने
को मचल रहीं थी
बारिश की बूंदे फिर
गुस्ताखीयां कर रही थी
बच रहे थे वो आब से
औऱ आब-ए-इश्क़ में
भीगे बिना रह भी नही पा रहे थे
💞😍😁
© pari
चाँदनी ढलक रही थी
उन्होंने जो देखा हमें,
धधकती हुई मोहोब्बत
नूर सी बरस रही थीं
फ़क़त वो रहते थे तन्हा
औऱ सरगोशियां मिलने
को मचल रहीं थी
बारिश की बूंदे फिर
गुस्ताखीयां कर रही थी
बच रहे थे वो आब से
औऱ आब-ए-इश्क़ में
भीगे बिना रह भी नही पा रहे थे
💞😍😁
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