#संसार #सागर #पथिक
यहां कोई नहीं तुम्हारा, तुम स्वयं ही संभलना,
हे! संसार-सागर के राही, तुम ज़रा ध्यानपूर्वक चलना,
मोहग्रस्त न होकर, राग-द्वेष से उबरना,
अज्ञानता को छोड़ तुम, स्व-ज्ञान को परखना ।
हे! अज्ञात राह के पथिक, तुम दिशा न भटकना,
स्वयं ही संभलकर, तुम सदैव सतत् ही चलना।
यहां कोई नहीं तुम्हारा, तुम स्वयं ही संभलना ।
तृष्णाओं की मृगमरीचिका में, तुम कतई न उलझना,
आत्म-अवलोकन से तुम, सही मार्ग पर चलना,
गिरकर भी संभलना, संभलकर ही चलना,
जीवन-सरिता के अटल सत्यों को, कतई न भूलना,
यहां कोई नहीं तुम्हारा, तुम स्वयं ही संभलना ।
तुम स्वयं ही संभलना ।।
©Mridula Rajpurohit ✍️
🗓️ 17 July, 2021
© All Rights Reserved
हे! संसार-सागर के राही, तुम ज़रा ध्यानपूर्वक चलना,
मोहग्रस्त न होकर, राग-द्वेष से उबरना,
अज्ञानता को छोड़ तुम, स्व-ज्ञान को परखना ।
हे! अज्ञात राह के पथिक, तुम दिशा न भटकना,
स्वयं ही संभलकर, तुम सदैव सतत् ही चलना।
यहां कोई नहीं तुम्हारा, तुम स्वयं ही संभलना ।
तृष्णाओं की मृगमरीचिका में, तुम कतई न उलझना,
आत्म-अवलोकन से तुम, सही मार्ग पर चलना,
गिरकर भी संभलना, संभलकर ही चलना,
जीवन-सरिता के अटल सत्यों को, कतई न भूलना,
यहां कोई नहीं तुम्हारा, तुम स्वयं ही संभलना ।
तुम स्वयं ही संभलना ।।
©Mridula Rajpurohit ✍️
🗓️ 17 July, 2021
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