मेहसूस होता है।
इन बाढोलों को देख के कुछ तो मेहसूस होता है।
सुबह की लाल किरण कुछ पुराने सपनें जो कि कभी पूरे न हो सके वो फिर एक बार मेहसूस होता है।
सूरज की गति से तुम्हारे साथ बिताये हुए हर वो लम्हा एक बार फिर आज महसूस होता है।
घड़ी की सुइयाँ जैसे हो गई है ज़िंदगी , जहां से सुरु हुए थे अभी भी वहीं है।
श्याम जैसे चांद की प्रतिक्षा कर रहा है उससे देख कर मुझे कुछ तुम्हारी याद तड़पा रही है।
आखिर तुम उस चांद के जैसे थे मेरे लिए, अब भी हो क्योंकी वो चांद भी आसमान को आखिर में छोड़ ही जाता है।
वो तो आसमान की गलती है कि चांद की गति को वो अपने मे समाजाना समझ ता है।