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#आज का आदमी
#आज_का_आदमी
आज का आदमी इतना बेबस, इतना लाचार हो गया है कि बिना किसी सहारे के दो कदम भी आगे नही बढ़ सकता। आदमी सिर्फ एक कठपुतली होकर रह गया है। आदमी सिर्फ ऊँच-नीच, जाति-धर्म, अर्वाचीन-प्राचीन के फेर में ही रह गया है। उसी के ऊपर एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ।
#आज_का_आदमी
दिशाहीन हो चौराहे पर,
पत्थर बनकर खड़ा आदमी।
क्या बोया था, क्या काटा है,
जीवन भर दुःख ही बांटा है।
पाश्चात्य के चकाचौंध में,
क्या से क्या बन गया आदमी।
किससे जीत, किससे हारा,
कुछ भी पता नही है उसको।
जब से होश संभाला जग में,
क्या से क्या हो गया आदमी।
कभी जाति ने उकसाया है,
कभी धरम ने भरमाया है।
ऊँच, नीच के चक्रवात में,
बुरी तरह है फंसा आदमी।
किससे कुछ कहे आदमी,
किसकी कुछ सुने आदमी।
कब कैसी घटना घट जाये,
असमंजस में पड़ा आदमी।
#जुगनू
आज का आदमी इतना बेबस, इतना लाचार हो गया है कि बिना किसी सहारे के दो कदम भी आगे नही बढ़ सकता। आदमी सिर्फ एक कठपुतली होकर रह गया है। आदमी सिर्फ ऊँच-नीच, जाति-धर्म, अर्वाचीन-प्राचीन के फेर में ही रह गया है। उसी के ऊपर एक कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ।
#आज_का_आदमी
दिशाहीन हो चौराहे पर,
पत्थर बनकर खड़ा आदमी।
क्या बोया था, क्या काटा है,
जीवन भर दुःख ही बांटा है।
पाश्चात्य के चकाचौंध में,
क्या से क्या बन गया आदमी।
किससे जीत, किससे हारा,
कुछ भी पता नही है उसको।
जब से होश संभाला जग में,
क्या से क्या हो गया आदमी।
कभी जाति ने उकसाया है,
कभी धरम ने भरमाया है।
ऊँच, नीच के चक्रवात में,
बुरी तरह है फंसा आदमी।
किससे कुछ कहे आदमी,
किसकी कुछ सुने आदमी।
कब कैसी घटना घट जाये,
असमंजस में पड़ा आदमी।
#जुगनू
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