...

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ख़ुदा या मैं
प्रमाण है इतिहास इस बात का
कि पागल भी बताया वही गया
जिसने वास्तव में कुछ भी पाया था
न हो भरोसा मत मानो
स्वयं देखो ना सुकरात को
क्या बिगाड़ा था उस देश या लोगों का
फ़िर भी ज़हर पिलाया था
अब तो कुछ समझे होगे
ज़रूर ही उसने कुछ पाया था
खुला किताब हर पन्ना बिखरा
किसी से क्या छिपाया था
जो पाया खुद ही तो पाया
क्या रईसों का उसने चुराया था??
इल्ज़ाम था है भ्रष्ट कर रहा सबको
इल्ज़ाम भी क्या खूब लगाया था
पा न पाओ तो मार गिराओ
यही तो नीतियों का मोह माया था।।
चलो ठीक है ये भी,,
क्या है ज़िन्दगी कुछ भी तो नहीं
तुम्हारी सोच से परे है क्या?
क्यूँ भर जाते हो हर वक्त यूं ही खौफ से
क्या खुदा हमारी पहुंच से परे है क्या?
जब सुख मे खुश हो तो दुख में क्यूँ नहीं
जब सुख सुख है तो दुख सुख से नहीं भरे है क्या,
थोड़ा इधर देखो थोड़ा नज़रिया तो बदलो
क्या वीर आज तक किसी पहाड़ से डरे है क्या?
रो रहे हो जिस बीते वक्त के लिए,
सोचो ना वो भी तो कभी जीवन का हिस्सा था,
कहाँ गए वो लफ़्ज़ कहाँ गई वो बातें
क्या मुंह से निकला वो सिर्फ कोई किस्सा था?
ज़रा सोचो एक पल को एक साधु हो
गम का कोई नाम नहीं
हंसाने का जिसके पास जादू हो
तो क्या करोगे??
जिसने हंसाया हो जिंदगी भर
उसके मौत पे रोना सही होगा क्या
बड़ी आस बाँध रखी है
बड़ी उम्मीदे लगा रखी है
क्या तुमने जैसा है सोचा सब वही...