...

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पिता
ना आँखों से ना जुबान से ही,
वो प्यार कभी जताता है
बहता झरना प्रेम का दिल में
आँखों से नहीं छलकाता है !
माँ तो ममता की मूरत है
वात्सल्य उसका ,कहाँ छिप पाता है !
ईश्वर सा अनंत है प्रेम पिता का
निराकार वो ,नजर ही नहीं आता है ।


© बदनाम कलमकार
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