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मैं कहाँ हूँ? (भाग - १)
मैं आदि में हूं, मैं अंत में हूं
आरंभ से लेकर अनंत में हूं,
विष्णु में मैं, नीलकंठ में हूं,
जटा में बहती मात गंग में हूं,

मैं दशानन में हूँ, मैं राम में हूँ
कंस में मैं घनश्याम में हूँ,
नरसिंघ में हूँ, बलराम में हूँ,
बुध भी मैं, परशुराम में हूँ।

मैं शिव में हूँ, शिवशक्ति में हूँ ,
हनुमंत में हूँ, राम भक्ति में हूँ,
ऋषभ भी मैं, वीरभद्र में हूँ ,
काल में हूँ मैं मुक्ति में हूँ।

मैं पुराण में हूँ, उपवेद में हूँ,
उपनिषद से लेकर वेद में हूँ,
पार्थ में हूँ, गीता उपदेश में हूँ।
मैं सर विद्याओ के भेद में हूँ।

मैं रचयिता में हूँ मैं रचना में हूँ,
मैं ब्रह्मा में मैं संरचना में हूँ
मैं सृष्टि की अधिरचना में हूँ,
जगजननी की मैं विरचना में हूँ।

मैं त्रिशूल में हूँ, तलवार में हूँ,
गदा में मैं, चक्रावतार में हूँ,
मैं शूल में हूँ, पिनाक में हूँ ,
मैं पुष्प से लेकर हार में हूँ

मैं कर्ता में हूँ, मैं कर्म में हूँ,
अधर्मी में मैं धर्म में हूँ ,
मैं जीवन में हूँ मैं मरण में हूँ।
मैं आनंद से लेकर मर्म में हूँ।

मैं गंगा में हूँ, मैं यमुना में हूँ ,
सरस्वती में हूँ, नर्मदा में हूँ ,
मैं कावेरी में हूँ मैं गोदा में हूँ ,
ब्रह्मपुत्र में भी मैं शिप्रा में हूँ।

में त्रिकूट में हूँ कैलाशनाथ में हूँ ,
मथुरा में मैं बदरीनाथ में हूँ,
मैं मानसर में हूँ, अमरनाथ में हूँ।
बद्री, सोम और जगन्नाथ में हूँ।

मैं गजः में हूँ, मैं श्वान में हूँ,
सिंह में हूँ मैं चक्रीवान में हूँ
मैं धेनु में हूँ वैशाख में हूँ,
मूषक वानर और काक में हूँ।


© Utkarsh Ahuja