...

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गज़ल
2122 2122 212
कौन कहता है पुराना साज़ हूं
मैं नया लहज़ा नई आवाज़ हूं

हूं जरा सी एक चिंगारी अभी
मैं धधकते शोलों का आगाज़ हूं

जानने आए वो वापिस जा चुके
जान पाया ना कोई वो राज़ हूं

आप बीती ही कहूंगी आपसे
ये न सोचें मैं कोई लफ्फाज़ हूं

ज़िंदगी ने जो कहा माना वही
ज़िंदगी के गीत का दम साज़ हूं

बोझ कह कर मत मेरी तौहीन कर
मैं हूं जो अपने पिता का नाज़ हूं

जान दे दूं प्यार में अपनी मगर
दुश्मनों पर गिर पड़े वो गाज़ हूं

आज तक तो तू रहा मुझसे खफा
सुन जमाने !आज मैं नाराज़ हूं

राह का पत्थर नहीं नीता कोई
मैं नगीना कीमती पुखराज़ हूं

© नीटू कुमार नीता