महसूस
कुछ दर्द जो छिपे हैं दिल में
महसूस हर वक्त करती हूं,
छिपा लिया करती हूं ये सोच
बेगुनाही का सबूत कहां से दूं।
शर्ते थी बेजुबान बनकर रहने की
लाख चाहकर भी कह न सके,
नीलाम हो गये बीच बाजार
अपनी कीमत क्या वह भी न जान पाई।
ये किस गुनाह का सजा है
जिसमें दिन नहीं सिर्फ रात है,
बेबस हर किरदार है यहां
और खरीददार हर नज़र है।
न मंजिल है न सफर का अंत है
वीरान गलियों का सिलसिला है,
सिर्फ महसूस किया इस दिल ने,हर इंसान आजगुनाहगार है।
महसूस हर वक्त करती हूं,
छिपा लिया करती हूं ये सोच
बेगुनाही का सबूत कहां से दूं।
शर्ते थी बेजुबान बनकर रहने की
लाख चाहकर भी कह न सके,
नीलाम हो गये बीच बाजार
अपनी कीमत क्या वह भी न जान पाई।
ये किस गुनाह का सजा है
जिसमें दिन नहीं सिर्फ रात है,
बेबस हर किरदार है यहां
और खरीददार हर नज़र है।
न मंजिल है न सफर का अंत है
वीरान गलियों का सिलसिला है,
सिर्फ महसूस किया इस दिल ने,हर इंसान आजगुनाहगार है।