स्त्री अस्तित्व
हर एक बाज़ार में बैठी वो,
हर एक तराज़ू में तोली गई,
ना मोल मिला उसका अब तक,
बस जिस्म समझ कर बोली लगी,
अपनी ज़द में वो घुटती रही,
नापाक भी होकर पाक रही,
एक मौन तपस्या में अविरत,
जलती भी रही शीतल भी रही,
ये जन्म उसे किसने है दिया,
किसने ढोया नौ माह उसे,
एक पूर्ति की अभिलाषा बनना,
ये किसने दिया है श्राप उसे,
स्वामित्य नहीं आधिपत्य नहीं,
वो किसी का अविरल रक्त नहीं,
श्रद्धा का बस एक प्रांगण है,
चिर आनंद का अदभुद श्रोत वही,
फिर भी आघात इतना अपमान,
क्या हृदय तुम्हारा क्षुब्ध नहीं,
इन...
हर एक तराज़ू में तोली गई,
ना मोल मिला उसका अब तक,
बस जिस्म समझ कर बोली लगी,
अपनी ज़द में वो घुटती रही,
नापाक भी होकर पाक रही,
एक मौन तपस्या में अविरत,
जलती भी रही शीतल भी रही,
ये जन्म उसे किसने है दिया,
किसने ढोया नौ माह उसे,
एक पूर्ति की अभिलाषा बनना,
ये किसने दिया है श्राप उसे,
स्वामित्य नहीं आधिपत्य नहीं,
वो किसी का अविरल रक्त नहीं,
श्रद्धा का बस एक प्रांगण है,
चिर आनंद का अदभुद श्रोत वही,
फिर भी आघात इतना अपमान,
क्या हृदय तुम्हारा क्षुब्ध नहीं,
इन...