जब बीत जाती है
तब कहीं जाकर समझ आती है
जब आधी से ज़्यादा बीत जाती है
या तो है हर कोई अपना
या फिर केवल एक सपना
एक सुलझी सी पहेली है
जो और उलझती जाती है
तब कहीं जाकर समझ आती है
जब आधी से ज़्यादा बीत जाती है
बिता दिया वक़्त दिखावे में
छोटा बना दिया बड़ी बातों ने
क्या खोया और क्या पाया
इसी कश्मकश में यूँ गंवाई जाती है
तब कहीं जाकर समझ आती है
जब आधी से ज़्यादा बीत जाती है
© vineetapundhir
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