शिक्षक के शब्दों की अनंत धारा...!!!
#ज्ञानकीधारा
शिक्षक के शब्दों की छाया, जैसे जल में पड़े हल्के कंपन,
निर्मल तालाब के गहरे जल में उठे लहरों के संग।
जो दूर-दूर तक फैलते, बनते जाते अनगिनत गोल,
छूते किनारे, और आगे बढ़ते, न थकते, न कभी तोड़।।१।।
शब्द उनके जैसे पहला पत्थर, जो तालाब में गिरा,
हल्के से जल में हिलोर उठी, और फिर कभी न ठहरा।
विस्तार उनका अंतहीन, एक मार्ग से कई राहें,
जहाँ पहुँचते, वहाँ खिलते नये जीवन के चाहें।।२।।
हर लहर में एक विचार, हर धारा में सिखने की कला,
जो एक विद्यार्थी से दूसरे तक, ऐसे बहता जैसे जल।
न कोई रोक सके इनको, न कोई सीमा बाँध पाए,
जहाँ पहुँचते शिक्षक...
शिक्षक के शब्दों की छाया, जैसे जल में पड़े हल्के कंपन,
निर्मल तालाब के गहरे जल में उठे लहरों के संग।
जो दूर-दूर तक फैलते, बनते जाते अनगिनत गोल,
छूते किनारे, और आगे बढ़ते, न थकते, न कभी तोड़।।१।।
शब्द उनके जैसे पहला पत्थर, जो तालाब में गिरा,
हल्के से जल में हिलोर उठी, और फिर कभी न ठहरा।
विस्तार उनका अंतहीन, एक मार्ग से कई राहें,
जहाँ पहुँचते, वहाँ खिलते नये जीवन के चाहें।।२।।
हर लहर में एक विचार, हर धारा में सिखने की कला,
जो एक विद्यार्थी से दूसरे तक, ऐसे बहता जैसे जल।
न कोई रोक सके इनको, न कोई सीमा बाँध पाए,
जहाँ पहुँचते शिक्षक...