...

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यकीन क्यूँ है.
गुजर गयी चाँदनी ठहर गयी हर शमा
ना मिल पाये दो दिल खामोश आसमान
ना शिकवा रहा किसी से अब ना शिकायत
गुजर गया यूँ ही मेरे गम का अब कारवाँ
कहने की सी है मोहब्बत सिर्फ पन्नों पर
मगर कहाँ है जिंदगी मेरी है सिर्फ दास्तान
वो आएगा पता है किसी रोज मुझको ढूंढने
यकीन है क्यूँ इतना क्या सच में है उसमे वफ़ा
कभी सोचते थे दिल में ना बसाएंगे किसी क़ो
क्यूँ इस कदर थी चाहत खुद भी है हम हैरान
कभी कदर होगी उसको हमारी पता नहीं
मगर जब होगी तब छोड़ जायेंगे ये जहाँ.
© Rashmi Garg