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माजी
ये परछाईयां जो साथ है मेरे, मेरी माजी की,
ये जो कुछ ख्वाब थे मेरे पर जो अब पराये हैं।
ये जो कुछ खुशबू सी है बिखरी है मेरे कमरे में,
ये तेरे साथ में गुजरी हुई रातों के साये हैं।।
कि अब तआरुफ भी अपनी छुपाये फिरते हैं साकी,
ये वो कुछ नगमें हैं जो मैंने अकेले में ही गाए हैं।
वो मेरे दस्तरस से यूं ही नहीं दूर थी ऐ दीप ,
रकीबों से ही उसने, हर बार महफ़िल सजाये हैं।।
#dying4her
@AK47
© AK47
ये जो कुछ ख्वाब थे मेरे पर जो अब पराये हैं।
ये जो कुछ खुशबू सी है बिखरी है मेरे कमरे में,
ये तेरे साथ में गुजरी हुई रातों के साये हैं।।
कि अब तआरुफ भी अपनी छुपाये फिरते हैं साकी,
ये वो कुछ नगमें हैं जो मैंने अकेले में ही गाए हैं।
वो मेरे दस्तरस से यूं ही नहीं दूर थी ऐ दीप ,
रकीबों से ही उसने, हर बार महफ़िल सजाये हैं।।
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