...

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मेरी माँ :गूँज रही है तेरी आवाज़ हर पल मेरे कानों में, तेरी मौजूदगी अब भी है घर के कोने कोने में
ज़िन्दगी को बूंद बूंद
मौत के सागर में पिघलते देखा है हमने !
वह मेरी "माँ " थी .....
जिन को सास से माँ बनते देखा है हमने!

उस बिस्तर पर अब सिलवटें नही है ..
टीवी चैनलों पर वह
सास बहू सिरियल अब नही चलती!
बाॅलकनी की कुर्सी ...
शाम को ख़ाली ही रहती है !
घर से निकलने से पहले
अब किसी को बोलना नही पड़ता है !

कितनी बातें थी, कितनी बातें है....
आज सब "याद" बन गयी है !
समय के साथ सबकुछ धुँधली हो जाएगी क्या ?
शायद ...नहीं ....
यह सफ़र सास-बहू से लेकर माँ-बेटी का था जो !!
© Bokul