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स्त्री बहती नदी की उर्मि सी
स्त्री बहती नदी की उर्मि सी
अपने उर में लिये संताप को
देखा है कैसे सहती है?
वो ख़ामोशी के साथ
बस निरंतर बहती है l

अपने उर में उमड़ते हुए
कितने सवालों को,
डूबो देती है l
ओर अपने किनारों को
कर आलिंगन प्रेम से भिगो देती है l
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नदी की उर्मि मलिन कर दी
स्त्री की सत्ता हीन कर दी,
समाज ने आज दोनों की व्यथा
देखो कैसे कैसे दीन कर दी l

आज इस नदी की उर्मि को
चाहिए अपने किनारों पर
उगी वनस्पति से समानता
जिहें सींचकर भी अपने जल से
इस सम्मान से जैसे वंचित है l

फौजी मुंडे sohan lal munday ✍️














© fauji munday sohan lal munday