" गूँज अंतर्मन की "
एक आवाज़ आती अक्सर भीतर से,
जो तन-मन को बेचैन सी करती,
पलट-पलट कर चहुँओर भी देखा,
तो भी कभी कहीं नहीं वो दिखती!
बतलाया एक दिन स्नेह से उसने,
कि सुन ओ बुद्धू और पगली,
मैं हूँ गूँज तेरे अंतर्मन की,
जो तेरे अंदर ही तो रहती!
रूह और शरीर के मध्य तेरे,
सेतु का मैं काम हूँ करती,
और बनकर गूँज तेरे अंतर्मन की,
निरंतर संवाद मैं तुझसे स्थापित करती!
ऊहापोह में फंसता जब भी मन तेरा,
इसी गूँज से तुझको निर्देशित करती,
पर सही कर्म पथ को तभी तू चुनती,
जब भीतर की गूँज को है सुन लेती!
मानस, चित्त, बुद्धि व अहं को,
समावेशित खुद में हूँ मैं रखती,
और इन्हीं चार तत्वों के द्वारा,
सूक्ष्म शरीर का महत्व मैं कहती!
सूक्ष्म शरीर ही ये आत्मा को तेरी,
निज में निवास प्रदान है करती,
और गूँज ये तेरे अंतर्मन की,
वाणी तेरी आत्मा की ही कहती!
है जुड़ाव आत्मा का परमात्मा से,
पर आवाज़ उसकी तू सुनती या ना सुनती,
ये.... मैं गूँज तेरे अंतर्मन की,
तुझ पर ही हूँ सब तज देती!
© Shalini Mathur
जो तन-मन को बेचैन सी करती,
पलट-पलट कर चहुँओर भी देखा,
तो भी कभी कहीं नहीं वो दिखती!
बतलाया एक दिन स्नेह से उसने,
कि सुन ओ बुद्धू और पगली,
मैं हूँ गूँज तेरे अंतर्मन की,
जो तेरे अंदर ही तो रहती!
रूह और शरीर के मध्य तेरे,
सेतु का मैं काम हूँ करती,
और बनकर गूँज तेरे अंतर्मन की,
निरंतर संवाद मैं तुझसे स्थापित करती!
ऊहापोह में फंसता जब भी मन तेरा,
इसी गूँज से तुझको निर्देशित करती,
पर सही कर्म पथ को तभी तू चुनती,
जब भीतर की गूँज को है सुन लेती!
मानस, चित्त, बुद्धि व अहं को,
समावेशित खुद में हूँ मैं रखती,
और इन्हीं चार तत्वों के द्वारा,
सूक्ष्म शरीर का महत्व मैं कहती!
सूक्ष्म शरीर ही ये आत्मा को तेरी,
निज में निवास प्रदान है करती,
और गूँज ये तेरे अंतर्मन की,
वाणी तेरी आत्मा की ही कहती!
है जुड़ाव आत्मा का परमात्मा से,
पर आवाज़ उसकी तू सुनती या ना सुनती,
ये.... मैं गूँज तेरे अंतर्मन की,
तुझ पर ही हूँ सब तज देती!
© Shalini Mathur