ग़ज़ल का असर है...
दरक रहे पहाड़ों में, जो ये, कुदरत का क़हर है
सबने कहा के, फट रहे बादल का असर है।
मानो या के ना मानो, मगर सच तो ये है के
इंसानी मन के, लालची दलदल, का असर है।
यूँही नहीं नाराज़ है, कुदरत इंसानों पर
कुदरत में बढ़ते मानवी, दख़ल का असर है।
जंगल को काट, बस गयीं, इंसानी बस्तियां...
सबने कहा के, फट रहे बादल का असर है।
मानो या के ना मानो, मगर सच तो ये है के
इंसानी मन के, लालची दलदल, का असर है।
यूँही नहीं नाराज़ है, कुदरत इंसानों पर
कुदरत में बढ़ते मानवी, दख़ल का असर है।
जंगल को काट, बस गयीं, इंसानी बस्तियां...