...

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" आजमा रहे हैं "
" आजमा रहे हैं "

क्या बात है..?
इस संसार में हर कोई 'आजमाने' के वास्ते ही पैदा हुए लगता है..!

यह कैसा सितम ढाए हो..?
जो देखो वो किसी न किसी रूप में एक दूजे को क्यूँ आजमा रहे हैं..?

जैसे कि सभी किसी न किसी मक़सद से जुड़े हों..!
कोई भी तो यहाँ पर खाली पीली आए तो नहीं है..!

सभी के फ़ितूर दिमाग में कुछ न कुछ कांड का उद्गम लिए एक दूसरे से मिल रहा है..!
क्या, क्यूँ, कब, कहाँ, कैसे की राह पर चल पड़ा है हर कोई..!

कुछ न कुछ हर किसी को किसी से चाहिए..!
बेगाने हों चाहे सगे संबंधी सब के मुंह से स्वार्थ का लार टपकता है..!

अभिलाषाओं की फ़ेहरिस्त लिए ऐसे भाग रहा है हर कोई कि जैसे इसके अलावा संसार में कोई जरूरी काम नहीं रह गया है..!

जहाँ देखो वहाँ...