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पन्नों की दुनिया में ...
यही पैरहन... यही बिछावन
प्रीत यही.... और एक लेखक का यही है वैरागपन!

पन्नों के बीच बसी यह दुनिया
जैसे नीले रंग के आसमान में
उजली सी छितरी रहतीं नवरत रेखाएं...

चंचल उर पर बैठे रहते हैं आशाओं के जुगनूँ
पन्नों के बीच उलझता...
और सुलझता...सा रहता है मन!

पन्नों में बिखरे हैं सतरंगी स्वप्न बीज़
पन्नों में उगते हैं,
उम्मीदों के वृक्ष... पहाड़... रवि...
शशधर...

इन्हीं पन्नों में निर्झर झरती रहतीं...
प्रीत की पावन नव - पुरातन...सी
परिभाषाएं...

फिर भी पन्नों के ही हाशिए पर
बैठा रहता है
एक लेखक का स्नेहिल सा मन!!
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