ख़ामोशी के पहलू में
ख़ामोशी के हर पहलू में, शायद छिप गई सारी बातें।
जो कभी कहती थी हज़ारों बातें, आज शांत हो गई।
मेरी एक भूल है या मै कमबख्त खुद को ही भूल गई।
ज्ञात नहीं अब मै अपनी सारी ख्वाहिशें भूल गई।
अंधेरा हो या सवेरा हो क्या फर्क पड़ता...
जो कभी कहती थी हज़ारों बातें, आज शांत हो गई।
मेरी एक भूल है या मै कमबख्त खुद को ही भूल गई।
ज्ञात नहीं अब मै अपनी सारी ख्वाहिशें भूल गई।
अंधेरा हो या सवेरा हो क्या फर्क पड़ता...