...

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आदी हूँ मै अंत का....
मै ने देखा उसके चेहरे पे वो ही अलौकिक आभा, जो सलोनी के चेहरे पे देखा था
जब वो सीख गयी थी प्यार करना
अपने हमसफ़र से
और मै खुद को उस भावना से
मुक्त होने के प्रयास मे जुट गया था
मुश्किल था उस समय भी और
आज भी मुश्किल है
पर परमात्मा मुझसे
आसान काम लेते कहाँ है ??
प्रेम है क्या ??
इसे प्रत्यक्ष रुप मे दिखाना
एक अद्भुत कारीगरी है।
मेरा स्वभाव है
इश्वर से मुझे जो कुछ मिला है
इसके लिए मुझे कुछ भी गिला नही है
न इश्वर को कोसता हूँ और
न अपनी किस्मत को
जानता हूँ उनके हर कार्य के पीछे...