मेरे क़रीब न रहो ......
मेरे क़रीब न रहो फ़र्क लेकिन कुछ नहीं
हर्फ-हर्फ सजाऊंगा तुझको मेरी किताब में
खलल पड़ा नसीब में पर वो न रूबरू हुआ
रफ्ता-रफ्ता बढ़ गया वो किसी फ़िराक में
हसरतों को एकदफा कर चला मैं...
हर्फ-हर्फ सजाऊंगा तुझको मेरी किताब में
खलल पड़ा नसीब में पर वो न रूबरू हुआ
रफ्ता-रफ्ता बढ़ गया वो किसी फ़िराक में
हसरतों को एकदफा कर चला मैं...