झूठ
अब मैं बहुत आसानी से,
बिना झिझक,
बिना टाल-मटोल,
बिना संकोच,
झूठ बोल लेता हूं।
सच तो ये भीे हैं कि,
मैं बिना किसी जरूरत के भी,
झूठ को सच से अच्छा बोल लेता हूं।
वो मेरी सम्मान को बढ़ाती हैं,
मुझे कामयाबी भी दिलाती हैं,
मेरे रहन सहन को बेहतर भी बनाती हैं।
लेकिन
ये प्रेम की शौतन हैं ,
इसके जन्म का आधार ही डर हैं,
क्योंकि मैं पहली बार झूठ,
अपने सबसे सुरक्षित जगह पर बोला था,
अपने ही घर में,
अपने ही लोगों के बीच में।
बिना झिझक,
बिना टाल-मटोल,
बिना संकोच,
झूठ बोल लेता हूं।
सच तो ये भीे हैं कि,
मैं बिना किसी जरूरत के भी,
झूठ को सच से अच्छा बोल लेता हूं।
वो मेरी सम्मान को बढ़ाती हैं,
मुझे कामयाबी भी दिलाती हैं,
मेरे रहन सहन को बेहतर भी बनाती हैं।
लेकिन
ये प्रेम की शौतन हैं ,
इसके जन्म का आधार ही डर हैं,
क्योंकि मैं पहली बार झूठ,
अपने सबसे सुरक्षित जगह पर बोला था,
अपने ही घर में,
अपने ही लोगों के बीच में।